सवाल-1 : भारत में फिल्म रिलीज करने से पहले किसे दिखाना जरूरी है?
जवाब : जो भी चीजें विजुअल फॉर्म में पब्लिकली रिलीज होती है जैसे- कोई फिल्म, शार्ट फिल्म या ऐड फिल्म, उनको जरूरत पड़ती है सेंसर सर्टिफिकेट की। इसके लिए सरकार ने एक अलग यूनिट बनाई है। इसे हम सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन यानी CBFC या सेंसर बोर्ड के नाम से जानते हैं। यहां से इन फिल्मों को सेंसर सर्टिफिकेट मिलता है।
इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि जब आप कोई फिल्म थिएटर में देखने जाते हैं तो कई बार फिल्म से पहले या बाद में ऐड दिखता है। इस ऐड से पहले ही सेंसर सर्टिफिकेट आता है। CBFC ही इन फिल्मों के लिए ये सेंसर सर्टिफिकेट जारी करती है।
भारत में 1913 में पहली फिल्म राजा हरीशचंद्र बनी। तब तक भारत में फिल्मों को लेकर इस तरह का कोई स्पेसिफिक कानून नहीं था। इंडियन सिनेमेटोग्राफी एक्ट 1920 में बना। शुरुआत में हर क्षेत्र के लिए रीजनल सेंसर्स थे, जो स्वतंत्र तौर पर काम करते थे। आजादी के बाद इन रीजनल सेंसर्स को मिलाकर बॉम्बे बोर्ड ऑफ फिल्म सेंसर्स बनाया गया।
सिनेमेटोग्राफ एक्ट 1952 लागू होने के बाद इस बोर्ड का नाम बदलकर सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सेंसर्स हो गया। 1983 में एक्ट में कुछ बदलाव के बाद इस संस्था का नाम सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन रखा गया। हालांकि पहले के नाम में सेंसर होने के चलते लोग अभी भी इसे सेंसर बोर्ड ही कहते हैं। हालांकि जैसा कि नाम से ‘सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन’ से ही स्पष्ट है कि यह फिल्मों के लिए सर्टिफिकेट जारी करती है न कि सेंसर करती है।
सवाल-2 : फिल्मों को सर्टिफिकेट देने वाली कमेटी में कौन लोग होते हैं?
जवाब : CBFC के बोर्ड का प्रमुख चेयरपर्सन होता है। बोर्ड में 25 मेंबर और 60 एडवाइजरी पैनल के मेंबर होते हैं। इनकी नियुक्ति सूचना और प्रसारण मंत्रालय करता है। ज्यादातर बोर्ड मेंबर फिल्म और टीवी इंडस्ट्री से जुड़े प्रोफेशनल्स होते हैं, जबकि एडवाइजरी पैनल के मेंबर फिल्म इंडस्ट्री के बाहर से होते हैं।
चेयरपर्सन और बोर्ड के सदस्य का कार्यकाल 3 साल का होता है, जबकि एडवाइजरी पैनल के मेंबर्स का कार्यकाल 2 साल का होता है। CEO मुख्य रूप से प्रशासनिक कामकाज का इंचार्ज होता है, लेकिन रीजनल ऑफिसर फिल्मों को सर्टिफाई करने वाली जांच कमेटियों का हिस्सा होते हैं।
जब कोई फिल्ममेकर सर्टिफिकेशन के लिए अप्लाई करता है, तो रीजनल ऑफिसर एक जांच कमेटी बनाता है। शॉर्ट फिल्मों के मामले में जांच कमेटी में एडवाइजरी पैनल के एक मेंबर और एक जांच अधिकारी शामिल होते हैं, जिनमें से एक महिला होनी चाहिए। वहीं फिल्मों के मामले जांच कमेटी में एडवाइजरी पैनल से 4 मेंबर लिए जाते हैं और एक जांच अधिकारी होता हैं, इनमें 2 महिलाओं का होना जरूरी है।
सवाल-3 : किसी फिल्म को सर्टिफिकेट देते वक्त क्या देखा जाता है?
जवाब : जांच कमेटी फिल्मों का बारीकी से निरीक्षण करती है। इस दौरान इस बात का पूरा ख्याल रखती है कि फिल्म से किसी खास वर्ग की भावनाओं को ठेस न पहुंचे। साथ ही ऐसा कोई सीन न हो, जिसमें हिंसा को सही ठहराया गया हो। यदि फिल्म में कहीं पर भी जानवरों को दिखाया गया है, तो उसके लिए 'नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट' लेने की भी जरूरत होती है।
जांच कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर रीजनल ऑफिसर फिल्मों को 4 तरह के सर्टिफिकेट देते हैं। ये U यानी यूनिवर्सल, U/A यानी पेरेंटल गाइडेंस, A यानी एडल्ट, S यानी स्पेशलाइज्ड ग्रुप होते हैं। फिल्म को कौन सा सर्टिफिकेट मिलेगा, यह जांच कमेटी में मेजॉरिटी के हिसाब से तय होता है। यदि किसी फिल्म में जांच कमेटी के मेंबरों में मेजॉरिटी से सहमति नहीं बन पाती तो उसका फैसला चेयरपर्सन करता है। सेंसर बोर्ड किसी भी फिल्म के सर्टिफिकेशन में ज्यादा से ज्यादा 68 दिनों का वक्त ले सकता है।
सवाल-4 : CBFC की तरफ से हरी झंडी मिलने के बाद भी फिल्मों पर हंगामा क्यों मचता है?
जवाब : फिल्मों पर हंगामा विशुद्ध रूप से राजनीतिक मामला होता है। कई बार छोटे संगठन या राजनीति दल लाइम लाइट में आने के लिए फिल्मों का विरोध करते हैं।
सवाल-5 : क्या भारत का सेंसर बोर्ड सिर्फ दिखावे का है, इसके पास ज्यादा शक्तियां नहीं हैं?
जवाब : सेंसर बोर्ड सिनेमेटोग्राफ एक्ट 1952 के तहत CBFC किसी फिल्म को सर्टिफिकेट देने से पहले कुछ सीन में कांट-छांट करने या हटाने का निर्देश दे सकता है। इसके साथ ही CBFC किसी फिल्म को सर्टिफिकेट देने मना कर सकता है, लेकिन बैन नहीं कर सकता है। सर्टिफिकेट नहीं देने का मतलब है कि वह फिल्म रिलीज नहीं हो सकेगी।
सिनेमेटोग्राफ एक्ट के सेक्शन 5 (B) में कहा गया है कि CBFC इन परिस्थितयों में किसी फिल्म को सर्टिफिकेट देने से इनकार कर सकती है…
यदि किसी फिल्म का कोई सीन भारत की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ हो।
इससे देश की सुरक्षा प्रभावित हो रही हो।
दूसरे देशों के साथ फ्रेंडली रिलेशन खराब होने का खतरा हो।
कोर्ट की अवमानना हो रही हो।
किसी अपराध के लिए उकसाने की संभावना बन रही हो।
सवाल-6 : कोई फिल्ममेकर सर्टिफिकेट से खुश नहीं है तो क्या कर सकता है?
जवाब : यदि किसी फिल्ममेकर को लगता है कि उसकी फिल्म सभी लोगों के देखने लायक है यानी उसे U सर्टिफिकेट मिलना चाहिए। वहीं CBFC उसे U/A सर्टिफिकेट दे देती है। ऐसी स्थिति में फिल्ममेकर रिवाइजिंग कमेटी के सामने फिर से सर्टिफिकेट के लिए अप्लाई कर सकते हैं।
रिवाइजिंग कमेटी में बोर्ड और एडवाइजरी पैनल के 9 मेंबर होते हैं। इस कमेटी में एडवाइजरी पैनल के उन मेंबर्स को नहीं रखा जाता है जो पहले एक बार फिल्म को देख चुके हैं। पहले जैसी ही प्रक्रिया इसमें भी दोहराई जाती है। हालांकि, अंतिम फैसला चेयरपर्सन का होता है। यदि फिल्ममेकर रिवाइजिंग कमेटी के फैसले से भी नहीं खुश है तो कोर्ट जा सकते हैं।
सवाल-7 : क्या विरोध प्रदर्शन की वजह से फिल्म रिलीज होने से रोका जा सकता है?
जवाब : नहीं। कर्नाटक हाइकोर्ट ने के.एम. शंकरप्पा वर्सेज यूनियन ऑफ इंडिया के दावे में फैसला सुनाया था कि एक बार सेंसर बोर्ड ने सर्टिफिकेट दे दिया, तो उसके बाद सरकार को फिल्म की समीक्षा का कोई अधिकार नहीं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी सिविल अपील 3106 ऑफ 1991 में 28 जनवरी 2020 को कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था।
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में फिल्म नानक शाह फकीर को पंजाब में बैन करने के मामले में सुनवाई करते हुए कहा था कि यदि CBFC एक बार किसी फिल्म को सर्टिफिकेट दे देता है तो उस फिल्म को रिलीज होने से नहीं रोका जा सकता है। कोर्ट ने कहा था कि ऐसी स्थिति में कोई भी समूह, बॉडी, एसोसिएशन या कोई शख्स फिल्म के प्रदर्शन यानी रिलीज होने में किसी प्रकार का व्यवधान नहीं पैदा कर सकता है।
हालांकि, सिनेमेटोग्राफ एक्ट 1952 के सेक्शन-5 E के तहत सरकार किसी फिल्म को मिले सर्टिफिकेट को दो वजहों से सस्पेंड कर सकती है। पहली- जब फिल्म के लिए सर्टिफिकेट लिया गया था तो उसमें कुछ और दिखाया गया था और जब फिल्म रिलीज हुई तो उसमें कुछ और दिखाया गया। दूसरी- यदि फिल्म के किसी हिस्से को नियमों के खिलाफ पाया जाता है।