स्वामी दयानंद सरस्वती की जीवनी

Prem Chand bhati
स्वामी दयानंद सरस्वती
⬧ स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी, 1824 को गुजरात के टंकारा में हुआ था। उनके माता-पिता यशोधाबाई और लालजी तिवारी थे।
⬧ मूल नक्षत्र में जन्म होने के कारण उन्हें पहले मूल शंकर तिवारी नाम दिया गया था।
⬧ स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा आर्य समाज की पहली इकाई की स्थापना औपचारिक रूप से 1875 में मुंबई (बॉम्बे) में की गई थी तथा कालांतर में इसका मुख्यालय लाहौर में स्थापित किया गया था।
⬧ आर्य समाज ने सामाजिक सुधारों और शिक्षा पर जोर देकर देश की सांस्कृतिक एवं सामाजिक जागृति में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
⬧ प्रधानमंत्री द्वारा 12 फरवरी, 2023 को सुबह 11 बजे दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में महर्षि दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती के उपलक्ष्य में साल भर चलने वाले समारोह का उद्घाटन किया गया है।
⬧ स्वामीजी सत्य की खोज में पंद्रह वर्ष (1845-60) तक तपस्वी के रूप में भटकते रहे, उनके विचार प्रसिद्ध कृति सत्यार्थ प्रकाश में प्रकाशित हुए थे।
⬧ स्वामी दयानंद सरस्वती एक भारतीय दार्शनिक, सामाजिक नेता और आर्य समाज के संस्थापक थे।
⬧ आर्य समाज वैदिक धर्म का एक सुधार आंदोलन है।  
⬧ स्वामी दयानंद सरस्वती 1876ई. में "भारत भारतीयों के लिए" के रूप में स्वराज का आह्वान करने वाले पहले व्यक्ति थे।
⬧ उनके एक अखंड भारत के दृष्टिकोण में वर्गहीन और जातिविहीन समाज (धार्मिक, सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर) तथा विदेशी शासन से मुक्त भारत शामिल था।
⬧ उन्होंने वेदों से प्रेरणा ली और उन्हें 'भारत के युग की चट्टान' तथा ‘हिंदू धर्म का अचूक और सच्चा मूल बीज’ माना।
⬧ उन्होंने "वेदों की ओर लौटो" का नारा दिया।
⬧ स्वामी दयानंद सरस्वती के दृष्टिकोण को साकार करने के लिए 1886 ई. में डीएवी (दयानंद एंग्लो वैदिक) स्कूल अस्तित्व में आए तथा पहला डीएवी स्कूल लाहौर में स्थापित किया गया जिसके प्रधानाध्यापक महात्मा हंसराज थे।
⬧ आर्य समाज का उद्देश्य वेदों (सबसे पुराने हिंदू धर्मग्रंथ) को सत्य के रूप में फिर से स्थापित करना है। उन्होंने वेदों में बाद की अभिवृद्धि को खारिज कर दिया और अपनी व्याख्या में अन्य वैदिक विचारों को भी शामिल किया।
⬧ आर्य समाज में मूर्ति पूजा का विरोध, पशु बलि, श्राद्ध (पूर्वजों की ओर से अनुष्ठान), जन्म के आधार पर जाति का निर्धारण न कि योग्यता के आधार पर, अस्पृश्यता, बाल विवाह, तीर्थयात्रा, पुजारी पद्धति और मंदिर प्रसाद की पूजा का विरोध किया जाता है।
⬧ यह वेदों की अचूकता, कर्म सिद्धांत (पिछले कर्मों का संचित प्रभाव) और संसार (मृत्यु व पुनर्जन्म की प्रक्रिया), गाय की पवित्रता, संस्कारों के महत्त्व (व्यक्तिगत संस्कार) की प्रभावशीलता को कायम रखता है। तथा अग्नि के लिए वैदिक यज्ञों की प्रभावकारिता एवं सामाजिक सुधार के कार्यक्रमों की पुष्टि करता है।
⬧ आर्य समाज द्वारा महिला शिक्षा के उत्थान के साथ ही अंतर्जातीय विवाह को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य किया गया।

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