अभी हाल ही में केरल के कासरगोड की नीलेश्वरम नगरपालिका में, हिंदू विवाह अधिनियम के तहत शादी करने वाले एक ट्रांसजेंडर-जोड़े ने शादी के रजिस्ट्रेशन के लिए लोकल बॉडी के पास अप्लाई किया। आवेदन के बाद पता चला कि रजिस्ट्रेशन के नियमों में थर्ड जेंडर की शादी से सबंधित नियम शामिल नहीं है। जिसके चलते केरल की सरकार, 2008 के सामान्य विवाह पंजीकरण नियम में संसोधन करने पर विचार कर रही है। दरअसल केरल में शादी करने के बाद रजिस्ट्रेशन करवाना जरुरी है लेकिन बनाये गए नियमों में थर्डजेंडर की शादी के रजिस्ट्रेशन का प्रावधान ही नहीं है। जिसके चलते पिछले कुछ दिनों से यह समस्या लगातार स्थानीय निकायों के सामने आ रही है।
- दरअसल जेंडर और सेक्सुअलिटी दोनों में फर्क होता है। सेक्सुअलिटी आपके सेक्सुअल ओरिएंटेशन को दिखाती है जिसका सीधा मतलब होता है कि आप किसके साथ सेक्सुअल रिलेशन बनाना चाहते हैं और आपका किस जेंडर में सेक्सुअल इंटरेस्ट है। बेसिकली लेस्बियन, गे दोनों होमोसेक्सुअल माने जाते हैं क्योंकि ये अपने ही जेंडर के लोगो के साथ सेक्सुअल रिलेशन बनाने में इंट्रेस्टेड होते हैं। जबकि बाइसेक्सुअल वो लोग होते हैं जो अपने जेंडर के लोगो के साथ सेक्सुअल रिलेशन तो बनाते ही हैं साथ ही दूसरे जेंडर के लोगो के साथ भी सेक्सुअल रिलेशन रखना चाहते हैं।
- बात अगर जेंडर की करें तो ये एक सामाजिक अवधारणा है। इसमें सेक्सुअल ओरिएंटेशन के साथ-साथ पर्सनालिटी के और भी गुण भी देखे जाते हैं। इसे इस तरह से भी कह सकते हैं कि यह समाज की पारंपरिक अपेक्षाएं और नियम हैं कि कौन सा लिंग किस तरह का काम और व्यवहार करेगा। जैसे लड़कियों का स्वाभाविक गुण होता है कि वे मृदुभाषी, शांत, विनम्र, और घरेलू होती हैं जबकि इसके ठीक उलट लड़के ज़्यादातर लाउड, ऑउटस्पोकेन और डोमिनेटिंग होते हैं। इसका एक उदाहरण आप इस तरह से देख सकते है कि इंदिरा गाँधी को हैंडसम वीमेन कहा जाता था क्योंकि उनमे पुरुषों के गुण अधिक थे। इन गुणों को आम बोलचाल की भाषा में मर्दाना और जनाना पर्सनालिटी कहा जाता है ।
- ट्रांसजेंडर इन दोनों गुणों से अलग होते हैं। ये जिस जेंडर के साथ जन्म लेते हैं उससे अलग जेंडर में खुद को पहचानते हैं। यानी एक पुरुष जो बायोलॉजिकल तौर पर पुरुष जैसा दिखता है वह अपने आप को महिला जैसा देखता है जबकि एक बायोलॉजिकल महिला खुद को पुरुष जैसा आइडेंटिफाई करती है। ऐसे कई जेण्डर हैं जो बाइनरी से अलग होते हैं जैसे - जेंडर न्यूट्रल, नॉन-बाइनरी, एजेंडर, पैंगेंडर, जेंडरक्वीर, टू-स्पिरिट और थर्ड जेंडर आदि।
- हमारा तीसरा सवाल था कि थर्ड जेंडर और होमोसेक्सुअल को हमारे देश में किस तरह का कानूनी और संविधानिक दर्जा दिया गया है। साल 2014 के नालसा जजमेंट से पहले, देश में केवल बाइनरी जेंडर थे - स्त्रीलिंग और पुल्लिंग। हालाँकि इस नालसा जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने निर्धारित किया कि ट्रांसजेंडर थर्ड जेंडर हैं और इन्हे देश में सभी प्रकार के अधिकार प्राप्त होंगे। जिसके बाद मानव परम्परा की शुरुआत से अस्तित्व में रहने वाले तीसरे जेंडर को भी समाज में मान्यता मिली। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद सरकार ने ट्रांसजेंडर व्यक्ति के अधिकारों के संरक्षण के लिए साल 2019 में एक अधिनियम पारित किया। इसमें ट्रांसजेंडर को रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के मामलों में भेदभाव के खिलाफ सुरक्षा दी गयी और ट्रांसजेंडर के अधिकारों की रक्षा के लिए कल्याणकारी उपाय अपनाए गए।
- इसके बाद साल 2018 में नवतेज जौहर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को आंशिक रूप से शून्य घोषित कर दिया और फैसला दिया कि लोग किसी भी जेंडर के साथ प्राइवेट स्पेस में किसी भी तरह का शारीरिक संबंध बना सकते हैं और ये अपराध नहीं माना जाएगा।
- अब चूँकि NALSA बनाम भारत संघ में यह कहा गया है कि -"लिंग और सेक्स दोनों एक शब्द नहीं हैं क्योंकि एक व्यक्ति का लिंग जन्म के समय जैविक रूप से निर्धारित होता है लेकिन सेक्स के मामले में ऐसा नहीं है। इसीलिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत थर्ड जेंडर को सभी तरह की समानता दी जाएगी। जिसके चलते इन्हें शादी का भी अधिकार मिला है। हिंदू धर्म के पुरुष और ट्रांसवुमन के बीच संपन्न हुआ विवाह, 1955 के हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 5 के तहत लीगल है। क्योंकि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अपने लिंग की पहचान करने का अधिकार है जिसके चलते यह अपना लिंग चेंज करवा कर भी शादी कर सकते हैं। इसी तरह विशेष विवाह अधिनियम की धारा 24 भी वयस्क पक्षकारों की शादियों के रजिस्ट्रेशन की अनुमति देती हैं लेकिन समान सेक्स में यानी होमोसेक्सुअल को किसी भी कानून के तहत विवाह का अधिकार नहीं मिला है। अभी इस अधिकार के लिए लड़ाई जारी है।