“वह व्यक्ति जो किसी हारे हुए को सहारा देता है या फिर जरूरतमंद की मदद करता है …. मेरी नज़र में वही सच्चा संत है।”
▪️डॉ. मुरलीधर देवीदास आमटे का जन्म 26 दिसम्बर, 1914 को महाराष्ट्र स्थित वर्धा जिले में हिंगणघाट गाँव में हुआ था।
▪️ उनके पिता देवीदास हरबाजी आमटे शासकीय सेवा में लेखपाल थे।
▪️ उन्होंने वकालत की तथा उसके बाद, उन्होंने अपना खुद का प्रतिष्ठान स्थापित किया।
▪️ डॉ. मुरलीधर देवीदास आमटे एक स्वतंत्रता सेनानी और भारत के सुप्रसिद्ध समाजसेवी थे, उन्हें लोग प्यार से बाबा आमटे कहा करते थे।
▪️ कालांतर में इनका झुकाव स्वाधीनता संग्राम की तरफ बढ़ने लगा और ये आज़ादी की लड़ाई के एक सिपाही बन गए।
▪️ वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें जेल जाना पड़ा। इस आंदोलन के दौरान जिन नेताओं को ब्रिटिश सरकार द्वारा कैद किया गया था, उनकी रिहाई के लिए बाबा आमटे ने बतौर वकील पैरवी भी की।
▪️ उन्होंने महात्मा गांधी के सेवाग्राम आश्रम में भी कुछ समय बिताया और अपने जीवन का बाकी समय गांधीवाद का अनुयायी बनकर निकाल दिया।
▪️ उनके आचरण से प्रभावित होकर गांधी जी ने उन्हें ‘अभय साधक’ की उपाधि दी थी।
▪️ भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्होंने वडोदरा में एक ऐसे कुष्ठ रोगी को देखा, जिसके पूरे शरीर में कीड़े पड़ गए थे। इस घटना से वे इतने द्रवीभूत हो गए कि उनके जीवन की अवधारणा ही बदल गई।
▪️ उन्होंने अपना पूरा जीवन इन कुष्ठ रोगियों की सेवा, खान-पान, उनको आश्रय देने में समर्पित कर दिया।
▪️ बाबा आमटे ने अविश्वास व भ्रांतियों को दूर करने की कोशिश की और जनता को जाग्रत किया कि कुष्ठ रोग एक संक्रामक रोग नहीं है। उनका कहना था कि किसी भी बीमार व्यक्ति के संपर्क में अगर स्वस्थ व्यक्ति आता है, तो वह बीमार नहीं होगा और इसका इलाज संभव है।
▪️ उन्होंने जनमानस की भ्रांति को दूर करने के लिए स्वयं को कुष्ठ रोग से ग्रसित कर लिया। समाज से परित्यक्त लोगों और कुष्ठ रोगियों के लिए उन्होंने अनेक आश्रमों और समुदायों की स्थापना की।
▪️ बाबा आमटे ने कई अन्य सामाजिक कार्यों जैसे- वन्य जीवन संरक्षण तथा नर्मदा बचाओ आंदोलन के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।
▪️ वर्ष 1973 में इन्होंने माडिया गोंड आदिवासियों के कल्याण के लिए ‘लोक बिरादरी प्रकल्प’ की स्थापना की थी।
▪️ उन्हे पद्मश्री, पद्म विभूषण, रैमन मैग्सेसे, मानव अधिकार के क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र पुरस्कार और गांधी शांति पुरस्कार समेत कई अन्य पुरस्कारों से नवाज़ा गया है।
▪️ वर्ष 1985 में 72 साल की उम्र में इन्होंने एकता का संदेश देने के लिए कन्याकुमारी से कश्मीर तक की पैदल यात्रा की थी।
▪️ 9 फ़रवरी, 2008 को 94 साल की आयु में बाबा आमटे का निधन हो गया।