कर्नल गुरबक्श सिंह ढिल्लों एवम आयुध कारखाना दिवस के बारे में जानते हैं

Harshita Bhati
आयुध कारखाना दिवस
 प्रतिवर्ष 18 मार्च को आयुध कारखाना दिवस मनाया जाता है।
 इस वर्ष इसका 222 वाँ स्‍थापना दिवस मनाया जा रहा है। 
 पहला आयुध कारखाना वर्ष 1801 में इसी दिन कोलकाता के कोसीपोर में स्‍थापित किया गया था, जिसे अब ‘गन एंड शेल फैक्टरी’ के रूप में जाना जाता है। 
 आयुध कारखाने दरअसल 41 आयुध कारखानों का एक समूह है, जिनका कॉरपोरेट मुख्‍यालय कोलकाता स्थित आयुध निर्माणी बोर्ड (ओएफबी) है। ओएफबी नए अवतार में 02 अप्रैल,1979 को अस्तित्‍व में आया था। 
 यह आयुध कारखानों और संबंधित संस्थानों के लिए एक पूर्ण निकाय है तथा वर्तमान में रक्षा मंत्रालय (MoD) का एक अधीनस्थ कार्यालय है।
 न केवल सशस्त्र बलों के लिए बल्कि अर्द्धसैनिक और पुलिस बलों हेतु हथियार, गोला-बारूद और आपूर्ति का एक बड़ा हिस्सा OFB द्वारा संचालित कारखानों से आता है।
 नागरिक और सैन्य-ग्रेड हथियार और गोला-बारूद, विस्फोटक, मिसाइल सिस्टम के लिए प्रणोदक और रसायन, सैन्य वाहन, बख्तरबंद वाहन, ऑप्टिकल उपकरण, पैराशूट, रक्षा उपकरण, सेना के कपड़े और सामान्य भंडार आदि इसके उत्पादन में शामिल हैं।
कर्नल गुरबक्श सिंह ढिल्लों
 आजाद हिंद फौज के वीर सिपाही कर्नल गुरबक्श सिंह ढिल्लों का जन्म 18 मार्च, 1914 को तत्कालीन लाहौर जिले में हुआ था। 
 कर्नल जी.एस. ढिल्लों ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लाहौर से पूरी की। 
 वे डॉक्टर बनना चाहते थे परंतु कतिपय कारणों से वह भारतीय सेना में वर्ष 1940 में कमीशन अधिकारी के रूप में शामिल हो गए।
 द्वितीय विश्वयुद्ध में भारतीय अंग्रेजी फौजों की तरफ से लड़ते हुए उन्हें जापानी सेना के समक्ष आत्म-समर्पण करना पड़ा। 
 सुभाषचंद्र बोस ने जब आजाद हिंद फौज का गठन किया, तो वे आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए और सुभाष चंद्रबोस ने इन्हें नेहरू ब्रिगेड के चैथी गोरिल्ला रेजीमेंट का प्रभार सौंपा।
 आजाद हिंद फौज की तरफ से लड़ते हुए इन्होंने ब्रिटिश सेना का बड़ा वीरता पूर्वक सामना किया परंतु वे ब्रिटिश सैनिकों द्वारा बंदी बना लिए गए और प्रेम कुमार सहगल और शाहनवाज खान के साथ दिल्ली भेज दिए गए।
 दिल्ली के लालकिले में उन पर कोर्ट मार्शल किया गया और मुकदमा चलाया गया।
 भूलाभाई देसाई के नेतृत्व में पंडित नेहरू ने भी इनके मुकदमे की पैरवी की परंतु उन्हें फाँसी की सजा सुनाई गई। 
 कालांतर में जन-दबाव के कारण इन्हें छोड़ दिया गया अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में इन्होंने शिवपुरी के हातौदी में अपना स्थाई निवास बना लिया।
 शिवपुरी की भूमि को आवास हेतु चुनने के कारण का बहुत ही बढ़िया वर्णन उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘फ्रॉम माय बोन्स‘ में किया है। 
 वर्ष 1998 में तत्कालीन राष्ट्रपति के. आर. नारायणन द्वारा इन्हें ‘पद्म भूषण’ की उपाधि से सम्मानित किया गया।
 शिवपुरी में निवास करते हुए दिनांक 6 फरवरी, 2006 को इनका देहान्त हो गया।

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