किसी का नाम बदलने का अधिकार हाल के मामलों में कानूनी जांच का विषय रहा है। इलाहाबाद और दिल्ली के उच्च न्यायालयों ने फैसला दिया है कि यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक आंतरिक हिस्सा है।
इलाहाबाद और दिल्ली उच्च न्यायालयों के फैसले
इलाहाबाद और दिल्ली के उच्च न्यायालयों ने अपना नाम बदलने के अधिकार को पहचानने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दोनों अदालतों ने स्वीकार किया है कि यह अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित है, जो जीवन के अधिकार की गारंटी देता है। यह ऐतिहासिक निर्णय किसी का नाम चुनने में व्यक्तिगत स्वायत्तता के महत्व को स्थापित करता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय का मामला: सदानंद और अन्य बनाम CBSE और अन्य
‘सदानंद और अन्य बनाम CBSE और अन्य’ मामले में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने दो भाइयों को जातिगत अत्याचार और सामाजिक कलंक के कारण अपना उपनाम बदलने की अनुमति दी थी। याचिकाकर्ताओं ने अपने मूल उपनाम ‘मोची’ से जुड़े नुकसान को दूर करने की मांग की थी। अदालत ने निर्धारित किया कि किसी की पहचान का अधिकार जीवन के अधिकार का एक अंतर्निहित घटक है जैसा कि अनुच्छेद 21 में निहित है।
CBSE और शैक्षिक प्रमाण पत्र का विवाद
उपरोक्त मामले में CBSE ने तर्क दिया कि उपनाम बदलने से दुरुपयोग हो सकता है और बाद में जाति में परिवर्तन हो सकता है। हालांकि, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि शैक्षिक प्रमाणपत्रों में नाम परिवर्तन को सभी पहचान संबंधी दस्तावेजों में एक साथ शामिल किया जाना चाहिए। यह निरंतरता सुनिश्चित करता है और भ्रम या पहचान दस्तावेजों के संभावित दुरुपयोग को रोकता है।