जैव विविधता अधिनियम 2002 में संशोधन (Amendment in Biodiversity Act 2002)

sohan bhati

 जब आप सौरमंडल के अनोखे ग्रह पृथ्वी की अद्भुत दुनिया को समझने की कोशिश करेंगे तो आप देखेंगे कि यह बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्मजीव से लेकर व्हेल जैसे जीव, Salix Herbacea (सैलिक्स हर्बेसिया) से लेकर सिकोइया सेपरविरेन्स जैसे पेड़ो, कवक और मानव तक का घर है। साइंस और एन्वॉयर्नमेंट की भाषा में इसे बायो-डाइवर्सिटी कहते हैं। असल में ये सूक्ष्मजीव, पौधे, जानवर, कवक और मानव सब आपस में लाइफ सिस्टम की एक चेन के जरिये बंधे हैं। ये न केवल एक दूसरे के भोजन का साधन हैं, बल्कि यह रहने के लिए अनुकूल आपसी माहौल भी बनाते हैं। ये एक दूसरे के जीवित रहने के लिए जलवायु रेगुलेट करते हैं, बीमारी में दवा का साधन बनते हैं और इकोसिस्टम को भी बेहतर बनाते हैं। अब चूँकि बायोडायवर्सिटी के सभी कंपोनेंट्स एक दूसरे के लिए यूजफुल हैं। इसलिए कभी-कभी इनका यूज इतना बढ़ जाता है कि एक कॉम्पोनेन्ट दूसरे के अस्तित्व को खतरा पहुंचाने लगता है। जिसके चलते पृथ्वी पर जीवन की सभी व्यवस्था गड़बड़ होने लगती है।


अब मानव सबसे शक्तिशाली है, इसलिए यह सबसे ज्यादा दूसरी प्रजातियों को नुकसान पहुंचाता है। जिसका रिजल्ट यह निकल कर आ रहा है कि जीव जंतु, पेड़-पौधे की कई प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। इन्ही प्रजातियों के बचाव के लिए जैविक विविधता पर एक कन्वेंशन किया गया। यह कन्वेंशन 5 जून, 1992 को ब्राजील के रियो डी जनेरियो के पृथ्वी शिखर सम्मेलन में हस्ताक्षर के लिए खोला गया था, जो 1993 में लागू हुआ था। साल 1994 में, भारत सहित कई देश जैविक विविधता को बनाये रखने के लिए इस सम्मेलन पर सहमत हुए थे।

अब चूँकि भारत ने इस कन्वेंशन को एक्सेप्ट किया था, इसलिए भारत ने साल 2002 में जैव विविधता अधिनियम लागू किया। इस एक्ट को लाने का मकसद था कि "जैविक विविधता का संरक्षण हो, इनके यूज को कानून के जरिये रेगुलेट किया जाये। जिससे इसका सतत उपयोग संभव हो। इन रिसोर्सेस के यूज और इनके Genetic Resources के यूज से जो लाभ हो उसे मानव समुदाय में न्यायसंगत तरीके से बांटा जाये।

अब ज़रा एक दूसरे पहलू पर नज़र डालते हैं। पिछले कुछ सालों में इंडियन मेडिसिन सिस्टम, आयुर्वेद और नेचुरोपैथी काफी पॉपुलर हुई है। जिसके चलते भारत के औषधीय पौधों पर रिसर्च भी काफी बढ़ा है। इन सब एक्टिविटीज के दौरान रिसर्चर्स एक समस्या का काफी समय से सामना कर रहे थे। रिसर्चर्स के मुताबिक जैव विविधता एक्ट 2002 के कुछ प्रावधानों पौधे को बचाने के लिए उन पर किसी भी तरह की गतिविधियों को प्रतिबंधित करते हैं। जिसके चलते उनका रिसर्च का काम लगातार प्रभावित हो रहा था।

रिसर्चस की इन्हीं समस्याओं को दूर करने के लिए और साल 2010 के नागोया प्रोटोकॉल को ध्यान में रखते हुए लोकसभा ने हाल ही में जैव विविधता अधिनियम में संशोधन किया है। इसके लिए एक जैव विविधता (संशोधन) विधेयक 2022 पारित किया गया है। इसमें नए संशोधनों के फायदों की बात करें तो

  • यह औषधीय पौधों पर रिसर्च को बढ़ावा देने वाला और पौधों वाली दवाओं के उत्पादन को प्रोत्साहित करेगा।
  • इससे वन उपज का लाभ भी लोकल लोगो तक पहुंचाया जा सकेगा।
  • इसके तहत पारंपरिक ज्ञान के यूजर्स और आयुष Practitioners को लोकल लेवल के समुदायों के साथ प्रॉफिट शेयर करने की अनिवार्यता से भी छूट दी जाएगी।
  • एक्ट में लिखी प्रक्रियाओं को इतना सरल और सुव्यवस्थित बनाया जाएगा कि सभी इसका पालन आसानी से कर सके।
  • Scientific Research में Biological Resources के यूज या उनके पेटेंट से जुड़े एप्लीकेशन के लिए अप्रूवल प्रक्रिया में तेजी लाने वाले प्रावधान भी शामिल किए गए हैं।
  • विधेयक में एक्ट के उल्लंघन के लिए आपराधिक दंड को भी हटा दिया है।
  • इस सबके अलावा इस बिल के जरिये भारत में Bio-resources के Conservation और Commercial Use के लिए विदेशी निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा।


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