'वन नेशन-वन इलेक्शन' के पक्ष में क्यों है केंद्र सरकार, जिसके लिए बुलाया गया विशेष सत्र

sohan bhati

केंद्र सरकार ने वन नेशन वन इलेक्शन पर एक कमेटी का गठन कर दिया है. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को इस कमेटी का अध्यक्ष चुना गया है. इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए सरकार ने 18 से 22 सितंबर तक दोनों सदनों का विशेष सत्र बुलाया है. यह 17वीं लोकसभा का 13वां और राज्यसभा का 261वां सत्र होगा, इसके तहत 5 बैठकें होंगी. 

One Nation One Election: केंद्र सरकार ने वन नेशन वन इलेक्शन पर एक कमेटी का गठन कर दिया है. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को इस कमेटी का अध्यक्ष चुना गया है. इसके सम्बन्ध में जल्द ही नोटिफिकेशन भी जारी किया जा सकता है. इस मुद्दे की लेकर देश में काफी समय से चर्चा की जा रही है कि देश के सभी चुनाव एक साथ कराये जाये.  


सरकार जल्द ही इस पर संसद में बिल भी पेश कर सकती है. इसके लिए सरकार ने 18 सितंबर से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया है जिसमें इस मुद्दे पर चर्चा किये जाने की संभावना है. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी एक देश एक चुनाव के कानूनी पहलुओं पर विचार करेगी. साथ ही इसके सम्बन्ध में आम जनता की भी राय ली जाएगी. 

  क्या है वन नेशन-वन इलेक्शन?

वन नेशन-वन इलेक्शन (One Nation, One Election) या एक देश-एक चुनाव का मतलब यह है कि पूरे देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराये जाये. आजादी के बाद बहुत समय तक ये दोनों चुनाव एक साथ कराये जाते थे. 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही कराये गए थे. 

यह प्रक्रिया ज्यादा दिनों तक चल नहीं पाई क्योंकि समय से पहले ही कई विधानसभाएं भंग हो गयी. जिस कारण इस प्रक्रिया पर सवाल उठने लगे. 1970 में लोकसभा के भंग होने के बाद देश में से एक देश-एक चुनाव की परंपरा पूरी तरह टूट गई.

वन नेशन-वन इलेक्शन के लाभ:

एक साथ चुनाव कराने का एक प्रमुख कारण अलग-अलग चुनावों में होने वाली लागत में कटौती करना है. एक रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2019 के लोकसभा चुनाव में 60,000 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. इस राशि में चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों द्वारा खर्च किया गया खर्च और चुनाव कराने के लिए भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा किया गया खर्च शामिल है.

इसके अलावा, एक साथ मतदान के समर्थकों का तर्क है कि इससे पूरे देश में प्रशासनिक व्यवस्था में दक्षता बढ़ेगी, क्योंकि मतदान के दौरान यह काफी धीमी हो जाती है. 

इस मुद्दे पर मोदी सरकार का क्या है रुख?

वर्ष 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही मोदी सरकार इस तरह की चुनावी व्यवस्था का समर्थन कर रही है. पीएम मोदी भी कई बार वन नेशन-वन इलेक्शन की वकालत कर चुके है. इसके सम्बन्ध में एक बार उन्होंने कहा था कि वन नेशन-वन इलेक्शन सिर्फ बहस का मुद्दा नहीं है यह आज देश की जरूरत है, इसलिए इस पर विचार किया जाना चाहिए.      

सरकार की ओर से विशेष सत्र की घोषणा:

एक देश एक चुनाव के मुद्दे पर चर्चा करने के लिए सरकार ने 18 से 22 सितंबर तक दोनों सदनों का विशेष सत्र बुलाया है. संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने इस विशेष सत्र के बुलाये जाने की घोषणा की है. यह 17वीं लोकसभा का 13वां और राज्यसभा का 261वां सत्र होगा, इसके तहत 5 बैठकें होंगी. 

कांग्रेस का क्या है रुख:

लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि आखिर एक देश एक चुनाव की सरकार को अचानक जरूरत क्यों हो गयी है. वही कांग्रेस अध्यक्ष विपक्षी गठबंधन इंडिया में हिस्सा लेने मुंबई गए हुए है. इस मुद्दे पर उन्होंने कहा कि उन्हें बिल लाने दीजिए, लड़ाई जारी रहेगी.            

अब तक पांच बार बुलाया गया है विशेष सत्र:

अब तक पांच बार संसद का विशेष सत्र बुलाया जा चुका है. 14-15 अगस्त 1947 को आजादी के समय पहली बार विशेष सत्र बुलाया गया था. उसके बाद 14-15 अगस्त 1972 को, 09 अगस्त 1992 को 26 अगस्त से 01 सितम्बर 1997 और 30 जून 2017 को संसद के विशेष सत्र बुलाये जा चुके है.    

किन मुद्दों के लिए बुलाया गया विशेष सत्र:

5 दिन के इस सत्र में वन नेशन-वन इलेक्शन के मुद्दे के अलावा, महिलाओं के लिए संसद में एक-तिहाई अतिरिक्त सीट के मुद्दे पर भी चर्चा की जाने की उम्मीद है. नए संसद भवन में ​शिफ्टिंग, यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल जैसे मुद्दों पर चर्चा की जा सकती है. साथ ही इनमें से कई बिल पेश भी किये जा सकते है.     

विशेष सत्र नए भवन में होगा:

संसद का विशेष सत्र संसद की नई बिल्डिंग में आयोजित किया जायेगा. प्रधानमंत्री मोदी ने 28 मई को इस नए भवन का उद्घाटन किया था. बीते 11 अगस्त को ही संसद का मानसून सत्र समाप्त हो गया था. इस सत्र में विपक्ष सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी लाया था जो ध्वनिमत से गिर गया था.


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